Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःसीधेसाधे चित्र



बिआहा सुभद्रा कुमारी चौहान

जबलपुर से आजमगढ़ ड्योढ़े दर्ज का जनाना डिब्बा और पूरे डिब्बे में अकेली मैं। डाकगाड़ी हवा में उड़ती चली जा रही थी, और मेरे दिमाग में रहर-रहकर एक ही बात चक्कर काट रही थी कि जब-जब मैं बच्ची को लेकर चलती हूँ, डिब्बे में तिल रखने की जगह नहीं होती और आज जब मैं बिलकुल अकेली हूँ तो डिब्बे भर में यात्रा करने वाली एक भी स्त्री नहीं। साथ में न तो कोई पुस्तक थी और न अखबार। मुझे अकेलापन अखरने लगा। बच्ची साथ होती तो वह इस बेंच से उस बेंच, इस खिड़की से उस खिड़की डिब्बे भर में दौड़ लगाती। उसे सँभाल रखने में मैं इतनी व्यस्त रहती कि न तो पुस्तक का ही अभाव खटकता और न किसी सहयात्री का।

जबलपुर से चलकर गाड़ी कटनी में रुकी। दूसरे डिब्बे में कई यात्री चढ़े और कई उतरे, पर इस जनाने इंटर में कोई परिवर्तन न हुआ। मैं जबलपुर से जैसे अकेली चली थी तैसे ही कटनी से भी चली। डाकगाड़ी फिर हवा से बातें करने लगी।

सतना आया, ट्रेन की गति कुछ धीमी पड़ी और मैं उठकर खिड़की के पास बैठ गई। देखा, एक छोटा-सा बच्चा-लड़की या लड़का प्लेटफॉर्म पर दौड़ा चला आ रहा है। उसके हाथों में पीतल की एक छोटी-सी थाली थी। थाली में एक छोटी-सी कटोरी, एक गिलास यह सब वह आरती उतारने की मुद्रा में पकड़े दौड़ रहा था। ट्रेन रुकी और वह बच्चा भी रुक गया, ठीक मेरे डिब्बे के सामने तभी मैंने देखा एक कांस्टेबल और स्टेशन के दो-तीन कर्मचारी उस बच्चे के विषय में कुछ कह रहे हैं। बच्चा उन्हीं के पास खड़ा था। जाने क्या सोचकर वह कांस्टेबल बच्चे को लाया और दरवाज़ा खोलकर डिब्बे में बिठा दिया। बच्चे को बिठाने के बाद वह मुझसे विनय भरे स्वर में बोला, “बहन आप ज़रा इस लड़की को इलाहाबाद में उतार देना। कई दिनों से यह स्टेशन आती है और कहती है कि इलाहाबाद जाना हैं।''
मैंने पूछा, “पर यह बच्ची है किसकी?''
“यह तो मैं नहीं जानता; ” कांस्टेबल ने कहा। ''पर इसे इलाहाबाद जाना ज़रूरी है, कई दिनों से कह रही है और गाड़ी के पास दौड़ुकर आती है।''

मैं और कुछ पूछूँ कि सीटी हो गई और ट्रेन चल पड़ी। मैंने सोचा कि ये भी मुसीबत ही है। ट्रेन इलाहाबाद लगभग ग्यारह बजे पहुँचती है। आज एक घंटा पीछे जा रही है तो बारह बजे से पहले क्या पहुँचेगी। इलाहाबाद पहुँचते पहुँचते यह सो गई तो? क्या इसे कोई लेने आएगा? कोई न आया तो किसे सौंपूँगी इसे? एक साथ मेरे मन में कई प्रश्न उठे, पर ट्रेन चल चुकी थी और वहाँ मेरे प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था।

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1 Comments

Abhinav ji

26-Jan-2022 10:09 PM

Nice

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